जैन धर्म के मुताबिक, रस पांच तरह के होते हैं: चर्परा, कडुवा, कषायला, खट्टा, मीठा जो रस नामकर्म है वह पाँच प्रकार का है - तिक्त नामकर्म, कटुकनामकर्म, कषायनामकर्म, आम्लनामकर्म और मधुर नामकर्म। ये रस के मूल भेद हैं, वैसे प्रत्येक (रसादि के) के संख्यात असंख्यात और अनंत भेद होते हैं। कसैला: कषाय स्वादवाला। जिसमें कसाव हो। जिसके खाने से जीभ में एक प्रकार की ऐंठन या संकोच मालूम हो। जैसे, आँवला, हड़ बेहड़ा, सुपारी आदि। कसैली वस्तुओं के उबालने से प्रायः काला रंग निकलता है। रस छह होते हैं या पांच? एक दूसरी मान्यता है जिसमें कहा गया है कि रस की संख्या छह है। इसमें उपर्युक्त पांच रस तो है हीं, साथ में लवण को भी एक रस माना गया है। पर ऐसा नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि लवण अम्ल और कटुक को मिलाकर बनाया जा सकता है। यानी कि वह मूल रस नहीं है। Five tastes (Ras) Pungent (Tikta) Bitter (Katuka) Astringent (Kashaya) Acid (Amla) Sweet (Madhura)
KhadiVadi for education