Chidiya ne: Kshma sagar ji maharaj Poem on parigrah | चिड़िया ने अपनी चोंच में जितना समाया: क्षमा सागर जी महाराज कविता

 

 

 

प्रतिदान  चिड़िया ने  अपनी चोंच में  जितना समाया  उतना पिया  उतना ही लिया,  सागर में जल  खेतों में दाना  बहुत था!  चिड़िया ने   घोंसला बनाया इतना  जिसमें समां जाए   जीवन अपना  संसार बहुत बड़ा था !  चिड़िया ने रोज   एक गीत गया  ऐसा जो   धरती और आकाश  सब में समाया   चिड़िया ने सदा सिखाया   एक लेना  देना सवाया !     Giving  The bird took  Only as much as its beak  Could hold;  It swallowed only  As much as it could drink.  Thus the grain in the field,  The water in the sea,  Remained enough and plenty.  The bird made its nest  Only as big  As its own body.  The world remained so big  And wide.  The bird sang a song  Each day  A song that  Filled the earth  And the sky.  The bird taught us;  Take less  And give plenty.





प्रस्तुत कविता मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज ने चिड़िया को ध्यान में रखकर लिखी हुई है। चिड़िया की ना संग्रह की प्रवृत्ति को मुनि श्री ने अत्यंत सुंदर भाषा में दर्शाया है। इस कविता के माध्यम से मुनि श्री ने बताया है कि चिड़िया कल के लिए कभी भी संग्रह करके नहीं रखती। वह जानती है कि जो चोंच देगा वह चुग्गा भी देगा। जो कल देगा वह कल की व्यवस्था भी करेगा। 

मनुष्य का परिग्रह भी विचारणीय है। उसको चिड़िया से कुछ सीखना चाहिए और अपनी परिग्रह की प्रवृत्ति को छोड़ देना चाहिए।

मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज एक दिगंबर जैन मुनि है। इनकी कविताएं बड़ी ही सरल और सुंदर होती हैं।जन सामान्य को अंदर से झकझोर करने वाली यह कविताएं पाठक को खूब पसंद आती हैं।

 

प्रतिदान

 चिड़िया ने

 अपनी चोंच में

 जितना समाया

 उतना पिया

 उतना ही लिया,

 सागर में जल

 खेतों में दाना

 बहुत था!

 चिड़िया ने 

 घोंसला बनाया इतना

 जिसमें समां जाए 

 जीवन अपना

 संसार बहुत बड़ा था !

 चिड़िया ने रोज 

 एक गीत गया

 ऐसा जो 

 धरती और आकाश

 सब में समाया 

 चिड़िया ने सदा सिखाया 

 एक लेना

 देना सवाया !


चिड़िया ने अपनी चोंच में जितना समाया उतना पिया सागर में जल  बहुत था। चिड़िया संग्रह नहीं करती। Birds do not collect for tomorrow, poem by kshma Sagar

 

Giving

 The bird took

 Only as much as its beak

 Could hold;

 It swallowed only

 As much as it could drink.

 Thus the grain in the field,

 The water in the sea,

 Remained enough and plenty.

 The bird made its nest

 Only as big

 As its own body.

 The world remained so big

 And wide.

 The bird sang a song

 Each day

 A song that

 Filled the earth

 And the sky.

 The bird taught us;

 Take less

 And give plenty.

 

Comments