एक राजा हाथी-पर सवार होकर घूमने के बाद अपने महल को लौटा तो जहाँ तक हाथी जा सकता था, वहाँ तक हाथी पर बैठा रहा। फिर घोड़े पर सवार हुआ। फिर जहाँ से घोड़े की गति रुक गयी, वहाँ घोड़े से उतरकर पालकी में बैठा। फिर पालकी से उतर कर अपने पलंग पर लेट गया। वहाँ दासियाँ राजा के पांव दबाने लगीं। दो दासियाँ उस पर पंखा झुलाने लगीं। राजा को आराम से नीद आ गयी।
कुछ समय बाद एक दासी ने दूसरी से प्रश्न किया-
हाथी चढ़ घोड़े चढ्या,
घोड़े चढ़ सुख पाव।
कदका थाक्या हे सखी!
अवै दबावै पाँव?
दोहे के द्वारा राजा के पाँव दबवाने का कारण पूछा गया था। जो थकता है वही अपने पाँव दबवाता है। राजा तो हाथी पर और फिर घोड़े पर चढ़कर और उसके बाद पालकी पर चढ़कर उतरा है, थकने का कोई प्रसंग ही नहीं दीखता। दूसरी दासी ने पूर्वजन्मकृत तप की ओर संकेत करते हुए उत्तर दिया-
भू सूत्या भूखा मर्या,
सह्या घणा सी ताप।
जदका थाक्या हे सखी!
अबे दवावे पाँव।।
-जैन कल्याण कथा कोष
तपस्या English: austerity or penance
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