अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम्।
त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् ॥
यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति।
तच्चाम्र-चारु-कलिका-निकरैक-हेतु ॥६॥
हिंदी भाषा में
अल्पश्रुत हूँ श्रुतवानों से, हास्य कराने का ही धाम।
करती है वाचाल मुझे प्रभु! भक्ति आपकी आठों याम॥
करती मधुर गान पिक मधु में, जग-जन मनहर अति अभिराम।
उसमें हेतु सरस फल-फूलों, से युत हरे-भरे तरु -आम॥ ६॥
भावार्थ
विद्वानों की हँसी के पात्र, मुझ अल्पज्ञानी को आपकी भक्ति ही बोलने को विवश करती हैं। बसन्त ऋतु में कोयल जो मधुर शब्द करती है उसमें निश्चय से आम्र कलिका ही एक मात्र कारण हैं।
प्रयोग
भक्तामर स्तोत्र के प्रत्येक काव्य का अपना ही एक महत्व है। भिन्न-भिन्न काव्यों से भिन्न-भिन्न सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यह छठा काव्य है जिससे कि सरस्वती विद्या बढ़ती है। यदि आप अपने बच्चों को बुद्धिमान बनाना चाहते हैं तो यह काव्य उनको रटा दीजिए।
Comments
Post a Comment