नमस्कार दोस्तों। कुछ अंग्रेजी के शब्द कपड़ों के साथ बहुत इस्तेमाल किए जाते हैं। जैसे कि सस्टेनेबल और इको-फ्रेंडली आदि। और ऐसा नहीं है कि यह शब्द सिर्फ फिरंगियों द्वारा ही इस्तेमाल किए जाते हैं।
आज भारत में भी इस बारे में बात होती है। रेमंड अथवा अरविंद जैसी कंपनियों को भी इन बातों पर ध्यान देना पड़ता है, कि हमारे कपड़े कहीं सरकार की पर्यावरण को बचाने की नीति का उल्लंघन तो नहीं कर रहे हैं।
थोड़ा बहुत नियमों का उल्लंघन तो चलता भी है। पर कभी-कभी तो भ्रष्ट औडिट अफसर भी जांचने को आ जाते हैं।
क्या आपको यह पता है कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा कौन सा उद्योग प्रदूषण फैलाए हुए हैं? हां आपने सही सोचा है। वस्त्र उत्पादन उद्योग ही पूरे संसार में सबसे ज्यादा प्रदूषण निर्माता है। पर क्या हमारा ध्यान कभी इस तरफ गया है?
जो कपड़े हमने पहने हुए हैं उनको बनाने में कितने रसायनों का उपयोग किया गया है, कितने प्लास्टिक का उपयोग किया गया है, कितने पानी को खराब किया गया है, कितनी शक्ति को खराब किया गया है, क्या आपको इसका कोई अंदाजा भी है?
और यही कपड़ा वनस्पति के संपर्क में आने पर उसको क्या नुकसान पहुंचाता है, क्या आपने कभी सोचा है?
मैं आपको बताता हूं कि यह कपड़ा, पड़ा पड़ा क्या नुकसान करता है। आपने मुंबई लोकल की पटरियों के बाजू में यह फटे कपड़े खूब देखे होगें। आपको यह दृश्य देखने पर कैसा लगता है? सुहावना या असुहावना?
और तो और यह कपड़ा वहां पड़े हुए सड़ता रहता है और बदबू मारता है। यह तो हुई आंखों देखी बात। यह अंदर ही अंदर वनस्पति को कितना नुकसान पहुंचाता है यह तो हमें मालूम ही नहीं।
यह कपड़ा पड़े पड़े मिट्टी को जहरीला बना देता है। यह मिट्टी फिर किसी काम की नहीं रह जाती। एक प्रकार से बंजर बन जाती है।
अभी ऐसा कपड़ा अकेला मिट्टी में ही थोड़ी ना पाया जाता है। हम तो ऐसे कपड़े को बहती नदी में फेंक देते हैं। जिससे नदी का प्रवाह रुक जाता है। यह कपड़ा वहां पर भी सड़ता-सड़ता गंदगी फैलाता है। और घूम फिर कर यह पानी हमारे ही घरों में पीने के लिए काम में आता है।
अब बताइए ऐसा कपड़ा अपने आसपास रखने में कितनी बुद्धिमानी है? जो जलने पर वायु प्रदूषण, पानी में जल प्रदूषण, मिट्टी में थल प्रदूषण पैदा करता हो? ऐसा ही यह पॉलिस्टर का कपड़ा है, जिसे आप टेरीकॉट के नाम से भी जानते हैं।
अब आते हैं कपास पर। कपास जमीन से उगता है और जमीन में ही जाकर समाप्त हो जाता है। एक प्रकार से जैसे अन्य जीवो का जीवन चक्र चलता है, वैसे ही कपास का भी चलता है। इसलिए कपास हमें प्रिय है।
कपास को दोबारा मिट्टी बनने में ज्यादा से ज्यादा ३ महिने लगते हैं। परन्तु पॉलिस्टर को दोबारा मिट्टी बनने में कम से कम १ लाख वर्ष लगते हैं।
फिर पॉलिस्टर को खत्म करने का एक ही रास्ता समझ में आता है, वह है इसको जलाना। पर जब आप इसे जलाने जाते हैं, तब यह कई जहरीली गैसों को वायु में छोड़ता है, जैसे कि कार्बन मोनोऑक्साइड। और यह कार्बन मोनोऑक्साइड इतना जहरीला है कि आपके शरीर में इसकी मात्रा १% भी होने से आप मर सकते हैं।
इतनी जहरीली चीज का इस्तेमाल आप क्यों करते हैं? मैं जानता हूं कि आपको यह नहीं पता है कि आपके कपड़ों में क्या-क्या मिला है। पर अब तो आप जागरूक बन जाइए।
दूसरी तरफ कपास जलाने पर ऐसा कुछ भी नहीं होता है।
कपास तो भगवान की दी हुई सुंदर चीज है। जिसका एकमात्र लक्ष्य ही आपके शरीर को बचाना है।
तो अब निर्णय आपके हाथ में है कि आप जागरूक होना चाहते हैं या नहीं।
आपको क्या लगता है कि हम पॉलिस्टर से निर्मित कपड़े, जो यहां वहां फेंक देते हैं, उनका दूसरे जीवो पर क्या असर पड़ता होगा। यह पॉलिस्टर और प्लास्टिक एक ही चीज है। और आपको तो पता ही होगा जब प्लास्टिक किसी जीव के गले के नीचे उतरता है, चाहे वह इंसान ही क्यों ना हो, वह उसको मार डालता है।
और आपके 81% वस्त्र इस पॉलिस्टर के माध्यम से ही बने हुए हैं। यानी कि जितने भी वस्त्र आप इस्तेमाल करते हैं उनमें ऐसा कोई भी वस्त्र नहीं है जो पूर्णतः सूत से बना हुआ हो। किसी ना किसी अंश में यह पॉलिस्टर उसमें मिला ही रहता है।
बताइए इतनी खतरनाक चीज आप अपने पास रखते हैं और आपको इस बारे में खबर ही नहीं।
तो सबसे ज्यादा पर्यावरण मित्र कौन सा वस्त्र है। सीधा सा उत्तर है शुद्ध सूती वस्त्र।
अभी मैंने इस पोस्ट में पॉलिस्टर और माइक्रोफाइबर्स की तो बात की ही नहीं। यह एक अलग पोस्ट में की जाएगी।
मैं अपनी लेखनी को यहीं पर विराम देता हूं और आपसे यह वादा चाहता हूं कि आप अपने पहनावे के माध्यम से पर्यावरण को सुरक्षित रखेंगे।
धन्यवाद।
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