कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती - कविता | Koshish Karne Walon ki Haar Nahin Hoti

आप लोग जब कभी भी कोई विशेष परीक्षा की तैयारी करते हैं तब आपके माता-पिता या फिर शुभ-चिंतक चाहते हैं कि आप वह परीक्षा पास कर लें। वे आपको अनेक प्रकार से प्रेरणा भी देते हैं। उनकी प्रेरणा पर आधारित यह कविता आपके लिए।

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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती


नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है

चढ़ती दीवारों पर, कई बार फिसलती है

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है

चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना फिर न अखरता है।

आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती


डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,

जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है

मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में

बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती


असफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो

क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो

जब तक न हो सफल, नींद चैन को त्यागो तुम

संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम


कुछ किए बिना ही जय-जय कार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है  चढ़ती दीवारों पर, कई बार फिसलती है, ant carrying load


क्या आप जानते हैं कि एक चींटी अपने वजन से ६० गुना ज्यादा वजन तक उठा लेती है। जबकि एक व्यक्ति अपने वजन से दोगुना वजन उठाना भी सहन नहीं कर पाता।

उपर्युक्त कविता बड़ी ही सहज भाषा में लिखी गई है। जिसका भावार्थ निम्न लिखित है।

कोशिश करने का अर्थ है कि आपकी रुचि अनुसार किसी कार्य को संपन्न करने का प्रयास करना। 

कविता में 'हार नहीं होती' का अर्थ कुछ पाने से है। उदाहरण के लिए, श्री राम चन्द्र जी ने आखिरकार सीता जी को रावण के चंगुल से मुक्त कर ही दिया, अथवा पा लिया। 

मान लीजिए कि श्री राम को सीता हरण की खबर लगते ही यदि वे उन्हें छुड़ाने की कोशिश न करते तो क्या वे सफल हो सकते थे? या फिर श्री राम, रावण से डर कर बैठ जाते तो क्या उन्हें सफलता मिल सकती थी? नहीं।

इसलिए हमें चाहिए कि हम अपनी रुचि अनुसार किसी कार्य के लिए प्रयत्नशील रहें।

कविता में गोताखोर शब्द आया है। गोताखोर मतलब एक व्यक्ति जो पानी में गोते लगाता है और गहराई में जाकर कीमती रत्न निकाल कर लाता है।

कविता के अंत में आया है कि 'कुछ किए बिना ही जय-जय कार नहीं होती'। इस पंक्ति का अर्थ है कि यदि आप चाहते हैं कि दुनिया आपको माने तो आपको चाहिए कि आप दुनिया के लिए कुछ कार्य करें।

उदाहरण के लिए गांधी जी के जीवन को देखें। आज उन्हें दुनिया इसलिए मानती है क्योंकि उन्होंने कभी हमारे हित के लिए कार्य किए थे।

बाकी पूरी कविता सरल भाषा में लिखी गई है। जिसे आसानी से समझा जा सकता है। फिर भी यदि आपको समझने में कोई कठिनाई हो रही है तो आप कमेंट कर के अपना सवाल पूछ सकते हैं।

इस कविता के रचयिता पद्मश्री सम्मानित सोहन लाल द्विवेदी (१९०६-१९८८) हैं। ये महात्मा गांधी से प्रेरित थे।

इस कविता के रचयिता को लेकर लोगों के मन में द्वंद भी है। कुछ जगहों पर इस कविता के रचयिता को हरिवंश राय बच्चन बताया गया है। पर श्री देवमणि पांडेय ने स्पष्ट कर दिया कि इस कविता के असली लेखक हरिवंश राय बच्चन नहीं बल्कि सोहन लाल द्विवेदी जी हैं।


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