आप ठगे सुख उपजे | Par Thage Dukh hoye

 कबीरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय।

आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुःख होय।।

   Kabir das doha || kabira aap thagaiye, कबीरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुःख होय। Aap thage sukh hoth hai,


कबीर दास जी कहते हैं कि यदि व्यक्ति दूसरों के द्वारा स्वयं ठगा जाए तो तात्विक दृष्टि से सोचने पर उसको सुख महसूस होता है पर उधर ही यदि व्यक्ति स्वयं ही दूसरों को ठगने लगे तो तात्विक दृष्टि से विचार ने पर उसको ग्लानि महसूस होगी स्वयं से घृणा होने लगेगी। इसलिए कबीरदास जी कहते हैं कि आप यदि स्वयं ठगे जाएं तो सुख है पर यदि आप दूसरों को ठगने लगें तो दुख होगा। इसलिए आप दूसरों को जीवन में कभी भी ठगे ना

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