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सतीश चंद्र दासगुप्ता: एक अद्भुत रसायन वैज्ञानिक एवं गांधीवादी | Satish Chandra Das Gupta: biography of the forgotten chemist in Hindi

सतीश चंद्र दास गुप्ता का जन्म १४ जून १८८० को बंगाल में स्थित कूरिग्राम गांव के रंगपुर डिस्ट्रिक्ट में हुआ था। यह गांव अभी बांग्लादेश के इलाके में आता है। 

सतीश जी बहुत गरीब परिवार में जन्मे थे।

इनका देहांत २४ दिसंबर १९९० को ९९ की उम्र में हुआ था। सतीश जी महात्मा गांधी के सहयोगियों में सबसे आखरी तक जीवित रहने वाले व्यक्तियों में से एक थे।

सतीश चंद्र दास गुप्ता ने अपना स्नातक / graduation अपने गांव से पूर्ण करने के बाद, रसायन विज्ञान विषय में स्नातकोत्तर / masters degree कोलकाता के Presidency College से १९०६ में पूर्ण की। इन्होंने यह डिग्री जाने-माने वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के मार्गदर्शन में पूर्ण की। 

सतीश चंद्र दास गुप्ता और आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के बीच में संबंध

डिग्री पूर्ण करने के बाद यह आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की लेबोरेटरी में ही काम करने लगे। सतीश की लगन को देखकर आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय ने इन्हें अपने ही स्थापित उद्योग में फैक्ट्री सुपरवाइजर का पद दे दिया। आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की फैक्ट्री का नाम बंगाल केमिकल वर्क्स था। यहां पर श्री सतीश चंद्र दासगुप्ता ने १८ वर्ष तक अपनी सेवा दी।

इन १८ वर्षों में श्री सतीश चंद्र राय गुप्ता जी ने कई आविष्कार एवं नवाचार किए। 

बीसवीं शताब्दी के पूर्व में महंगा एवं बहुत सारा माल विदेश से आयात किया जाता था। श्री सतीश चंद्र दास गुप्ता जी ने ऐसी कई तकनीक ढूंढ़ निकाली जिससे उस माल का उत्पादन भारत में ही होने लगे। स्ट्राइसनाईन अल्कलॉइड्स का आविष्कार, चाय के खराब पत्तों से कैफीन निकाला, कई तरह की प्राकृतिक स्याही का आविष्कार, तेल जैसे कई आविष्कारों को सतीश जी ने अंजाम दिया। 

इसके अलावा उन्होंने कई रासायनिक औजारों का आविष्कार भी किया। जिनमें से मुख्य था फायर एक्सटिंग्विशर / fire extinguisher का आविष्कार। 

बीसवीं शताब्दी के शुरुआती दशक में फायर एक्सटिंग्विशर बेहद महंगा आता था। सतीश चंद्र दास गुप्ता जी ने एक फायर एक्सटिंग्विशर खरीद कर, उसको खोल कर, उसकी जांच की और अपनी बुद्धि लगाकर ऐसा फायर एक्सटिंग्विशर बनाया जोकि पहले वाले फायर एक्सटिंग्विशर की कीमत का एक चौथाई था, वह भी नफा मिलाकर।

आपको बता दूं कि इस फायर एक्सटिंग्विशर को १९१९ के समय मेसोपोटामिया में हो रहे पहले विश्व युद्ध में बेचा गया। इसकी बिक्री के दौरान फैक्ट्री को सब कुछ मिला करके ₹४००००० का फायदा हुआ। इसमें से आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय ने ₹२००००० सतीश चंद्र दास गुप्ता को दे दिए।

सतीश चंद्र दास गुप्ता और महात्मा गांधी के बीच में संबंध

यह बात सन् १९२१ की है। सतीश चंद्र दास गुप्ता ने महात्मा गांधी के बारे में सुना तो खूब था, पर उनके दर्शन उन्होंने पहली बार सन १९२१ में किए। महात्मा गांधी से बातचीत होने के पश्चात वे महात्मा गांधी के भक्त हो चुके थे। वे चाहते थे कि अपनी पूरी कमाई महात्मा गांधी के द्वारा किए जा रहे रचनात्मक कार्यों में दान दे दें। 

महात्मा गांधी ऐसा नहीं चाह रहे थे। वे चाहते थे कि सतीश जी आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के साथ में रह कर वैज्ञानिक क्षेत्र में ही आगे बढ़ें।

फैक्ट्री के कर्मचारियों ने भी सतीश चंद्र दास गुप्ता को रोकने का प्रयत्न किया। पर एक दिन सतीश जी फैक्ट्री को छोड़कर महात्मा गांधी के साथ चल दिए। यह सन् बात १९२३ की है।

महात्मा गांधी ने सतीश जी से कहा कि यदि आप भारत की सेवा करना चाहते हैं तो आपको खादी की सेवा करनी चाहिए। यह बात सतीश जी को जंच गई। 

सतीश जी ने कुछ ही दिनों के अंतराल में कोलकाता की सरहद पर सोडेपुर खादी प्रतिष्ठान की स्थापना की। महात्मा गांधी यहां पर कई बार आते-जाते रहते थे। जैसे कि १९३९ में कांग्रेस सभा जिसमें सुभाष चंद्र बोस ने भी भाग लिया था, सभा के बाद ही सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से बाहर जाने का इरादा कर लिया था। ९ से १३ अगस्त १९४७ तक भी महात्मा गांधी यहां पर रहे थे। सोडेपुर को गांधीजी अपना दूसरा घर मानते थे।

साबरमती और सोडेपुर के बीच में अंतर

महात्मा गांधी कहते थे कि मैं साबरमती को सोडेपुर से अलग रखना चाहूंगा। 'सोडेपुर में जबकि खादी की विद्या दी जाती है तो साबरमती में आध्यात्मिक विद्या दी जाती है। दोनों बराबर ही जरूरी हैं।'

महात्मा गांधी के अग्रिम दर्जे के सहयोगी

बंगाल दांडी यात्रा, अंग्रेजों भारत छोड़ो ऐसे अनेकों आंदोलनों में हिस्सा लेकर सतीश जी जेल भी गए।

सतीश चंद्र दास गुप्ता जी जितना सम्मान रसायन विज्ञान का करते थे उतना ही सम्मान बढ़ई एवं लोहार के कामों का भी करते थे। विज्ञान के साथ वे व्यावहारिक जीवन में भी सफल व्यक्ति थे।

महात्मा गांधी की मृत्यु व आजादी के बाद सतीश चंद्र दास गुप्ता

आजादी के बाद सतीश चंद्र दास गुप्ता को सरकार ने कई पद देना चाहे। जैसे कि कौंसिल ऑफ डेका। फिर सतीश चंद्र दास गुप्ता को ताम्रपत्र एवं वे स्वतंत्रता सेनानी जो जेल जाते हैं, उसकी पेंशन मिलनी थी। वह भी सरकार ने उन्हें देनी चाही। पर सतीश जी ने इसे भी अस्वीकार किया। उनका कहना था कि जेल में बिताया हुआ वक्त, मेरे लिए खुशी का वक्त था। तब मैंने बहुत सारे रचनात्मक कामों को अंजाम दिया।

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फिर सतीश जी को पहली kvic की सदस्यता भी मिली। इसे उन्होंने स्वीकार किया। पर इस संघ ने गांधी चरखा को बदलकर अंबर चरखा को लाने का उपक्रम किया। तो सतीश जी ने इस पद से भी इस्तीफा दे दिया।

सतीश चंद्र दास गुप्ता जी ने ८६ वर्ष की उम्र में, गोगरा गांव में कृषि रिसर्च फॉर्म की स्थापना भी की। जिसका मकसद पानी जो मिट्टी को बहाकर ले जाता था उसको रोकना था। यदि इसमें में सफल हो जाते हैं तो किसानों को बहुत फायदा मिलता। इसी दौरान उन्होंने गाय के गोबर की खाद बनाना व टंकी निर्माण के कार्यों को प्रोत्साहित किया। जिससे किसानों को बहुत मदद मिली।

आज भी भारत ऐसे रसायन शास्त्री, स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी और खादीवादी को याद रखेगा।

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