कर तू प्रभु का ध्यान बाबा lyrics | kar tu prabhu ka dhyan lyrics

कर तू प्रभु का ध्यान

करले प्रभु का ध्यान बाबा विमर्श सागर


कर तू प्रभु का ध्यान बाबा... कांटो में भी जीवन तेरा फूलों सा खिल जायेगा

रचयिता : श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महाराज

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।

काँटों में भी जीवन तेरा, फूलों सा खिल जायेगा। 

खोज रहा है जिसको तू वह, पलभर में मिल जायेगा। 

खुद को तू पहिचान-बाबा, खुद को तू पहिचान । 1।।

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।


धन-वैभव यह महल-खजाना, कुछ भी साथ न जायेगा।

सुबह खिला जो फूल बाग में, साँझ समय मुरझायेगा। 

कर ले धर्मध्यान-बाबा, कर ले धर्मध्यान ।।2।।

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।


कभी किसी का दिल दुःख जाये, ऐसे बोल कभी मत बोल। 

घावों पर मल्हम बन जायें, ऐसे बोल बड़े अनमोल। 

कहलाता यह ज्ञान-बाबा, कहलाता यह ज्ञान ||3||

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।


माता-पिता, बड़ों का आदर, धर्ममार्ग पर चलो सदा।

गुरुजन की नित सेवा करना, श्रावक का कर्तव्य कहा।

पाओगे सम्मान-बाबा, पाओगे सम्मान ।।4।।

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।


हिंसा, झूठ, कुशील, परिग्रह, चोरी यह मत पाप करो। 

पाप विनाशक, धर्म प्रकाशक, णमोकार का जाप करो। 

हो सम्यक् श्रद्धान-बाबा, हो सम्यक् श्रद्धान।।5।।

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।


राग-द्वेष भावों के कारण, भवसागर में डूब रहा। 

गँवा रहा भोगों में जीवन, मन फिर भी न ऊब रहा।

क्यों बनता नादान-बाबा, क्यों बनता नादान ।।6।।

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।


जिसको अपना कहा आज तक, हुआ कभी ना वह अपना। 

जिसकी खातिर जिया आज तक, निकला वह सुंदर सपना।। 

क्यों तू करे गुमान-बाबा, क्यों तू करे गुमान ।।7।।

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।


मेंढक ने प्रभु ध्यान किया जब, मरकर देव हुआ तत्काल। 

समवशरण में प्रभु को ध्याया, जीवन उसका हुआ निहाल ।

मिट जाये अज्ञान-बाबा, मिट जाये अज्ञान ।।8।।

कर तू प्रभु का ध्यान-बाबा, कर तू प्रभु का ध्यान। 

निज घट में भगवान बाबा, निज घट में भगवान ।।


भावार्थ

यह भजन हमें सत्य, अहिंसा, धर्म, माता-पिता की सेवा, मधुर वाणी, और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है। यह बताता है कि सांसारिक सुख क्षणिक हैं, लेकिन धर्म और प्रभु-भक्ति ही हमें शाश्वत आनंद की ओर ले जा सकते हैं।

यदि हम इस भजन में दिए गए उपदेशों को अपने जीवन में उतार लें, तो न केवल हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं, बल्कि मोक्ष की राह पर भी अग्रसर हो सकते हैं।



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