Kan ka tyag se Dhan prapt nahi ho sakta
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्॥
प्रस्तुत श्लोक में सुंदर अलंकारों का प्रयोग कर जीवन में विद्या एवं धन का संचय करने की बात बताई गई है। "क्षण" एवं "कण" शब्द का सुंदरता से प्रयोग किया गया है और कहा गया है कि एक-एक क्षण का उपयोग कर एवं एक-एक कण का उपयोग कर धन साधना ( प्राप्त करना) चाहिए।
तात्पर्य यह है कि प्रत्येक क्षण का सदुपयोग कर विद्या प्राप्त करनी चाहिए एवं हर कण का संचय कर धन संचित करना चाहिए। श्लोक की दूसरी पंक्ति कहती है कि जो इन क्षणों का त्याग करता है, अर्थात जो समय यूं ही गवा देता है उसे विद्या कहां से प्राप्त होगी?
और जो कण का महत्व नहीं समझता और उसे गवा देता है, उसे धन कहां से प्राप्त होगा?
अर्थात क्षण गवाने वाले को विद्या नहीं मिल सकती और कण गवाने वाले को कभी धन नहीं प्राप्त हो सकता। प्रस्तुत श्लोक के माध्यम से विद्यार्थियों को एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश मिलता है। प्रस्तुत श्लोक हमें प्रेरणा देता है कि विद्यार्थी जीवन को विद्या के अर्जन में लगाना चाहिए। क्योंकि समय गंवाने वाले को विद्या प्राप्त कभी नहीं होती।
Kan Bina dhan nahi English
In every moment, wisdom yearns,
In every bit, the fortune turns.
Let not a second slip in vain,
Lest knowledge fades, and none remain.
Let not a grain be cast away,
For wealth is built from day to day.
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