Skip to main content

रानी लक्ष्मी बाई की कहानी | Jhansi Rani Lakshmi Bai hindi

 

 

सन् 1857 की याद आते ही रानी झांसी का नाम याद आ जाता है। वह भारत की सबसे बहादुर महिलाओं में से थी। यह उसी की कहानी है। 


आखिर सन् 1857 में क्या खास बात है? यह वही साल था जब भारतीय सैनिकों ने अपने अंग्रेज मालिकों के खिलाफ खुलकर शस्त्र उठा लिए थे। वह पहला संगठित संघर्ष था और भारतीय इसे आजादी की पहली लड़ाई कहते हैं। अंग्रेजों की नजर में यह विद्रोह था सेपोय विद्रोह। अंग्रेजों की सेना में काम करने वाले भारतीय 'सेपोय' कहलाते थे। यह शब्द हिंदी के सिपाही से बना है।


ताकत और चालाकी के बल पर अंग्रेजों ने पूरे भारत पर अपना कब्जा कर लिया था। भारतीय पिछले 200 सालों से अपने ही देश में गुलाम थे। बदलाव की घड़ी आ गयी थी।


लक्ष्मीबाई का जन्म सन् 1827 में बनारस में हुआ था। हालांकि कुछ लोग उनका जन्म सन् 1835 का बताते हैं। जन्म के समय ही कुछ पंडितों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बच्ची बड़ी होकर रानी बनेगी। पिता मोरोपंत ताम्बे और माता भागीरथीबाई ने गंगा नदी के नाम पर उसका नाम रखा - मनुकर्णिका प्यार से सब उसे मनु कहते थे। मनु को अपनी मां से रामायण और महाभारत की कहानियां सुनना बहुत अच्छा लगता था। 


अचानक भागीरथीबाई का देहांत हो गया। तब मनु सिर्फ चार साल की थी। इसके बाद मोरोपंत बिठूर नामक स्थान पर आ गये। वहां वह बाजी राव द्वितीय के कर्मचारी थे, जो कभी पेशवा रह चुके थे। मराठा शासकों को 'पेशवा' कहा जाता था।


नये माहौल में घुलने-मिलने में को अधिक समय नहीं लगा। उनकी मित्रता नाना साहिब और तात्या टोपे नामक दो लड़कों से हो गयी। नाना साहिब बाजी राव के गोद लिए पुत्र थे। उनसे मनु ने निशानेबाजी और घुड़सवारी सीखी। हालांकि उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने लिखाने का चलन नहीं था, लेकिन मनु विद्यालय जाती थी। बाजी राव सहित सभी लोग उसे छबीली कह कर बुलाते थे। निश्चित ही उनमें कुछ अलग बात थी।


शायद इसीलिए झांसी के राजा गंगाधर राव ने उससे विवाह करने का फैसला किया था। वह भी तब जब कि वह अपनी पहली पत्नी रामाबाई की मृत्यु के बाद विवाह न करने की ठान चुके थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। जब गंगाधर राव ने मनु से विवाह किया तब वह सिर्फ 15 साल की बच्ची ही थी। लेकिन वह निडर और समझदार थी। दुल्हन को नया नाम दिया गया, लक्ष्मीबाई, यानी झांसी की रानी।


झांसी राज्य मध्य भारत में स्थित था। यह क्षेत्र इन दिनों उत्तरप्रदेश में आता है। झांसी की प्रजा ने मन से लक्ष्मीबाई का स्वागत किया। वह भी प्रजा को बहुत स्नेह करती थी।


सन् 1851 में लक्ष्मीबाई ने एक बेटे को जन्म दिया। जनता में खुशी की लहर दौड़ गयी। राज्य का उत्तराधिकारी आ गया था दुर्भाग्य की बात कि बच्चा तीन महीने के बाद ही चल बसा। प्रजा का दिल टूट गया। उन दिनों निःसंतान राजा बच्चा गोद ले लिया करते थे। गंगाधर राव ने अपने चचेरे भाई के पांच वर्षीय पुत्र आनंद राव को गोद लेने का फैसला किया। 19 नवंबर, 1853 को एक भव्य समारोह में आनंद को दामोदर राव गंगाधर नाम दिया गया।


राजा ने अंग्रेजों को अपने दत्तक पुत्र की जानकारी देते हुए सूचित किया कि बच्चे के जवान होने तक उसकी रानी लक्ष्मीबाई राज-काज का काम देखेगी।


और यहीं से झांसी के बुरे दिन शुरू हो गये। लगता था कि राजा को इसी घड़ी का इंतजार था क्योंकि इसके दो दिन बाद ही गंगाधर राव चल बसे। गवर्नर जनरल लार्ड डलहोजी ने तत्काल झांसी पर कब्जे का ऐलान कर दिया।


अंग्रेज नये-नये राज्यों को हड़पने के लिए चालाकी से विलय की नीति का सहारा लेते थे। यही उन्होंने झांसी में भी किया। यदि कोई भारतीय राजा अपने असली वारिस के बगैर मर जाता था तो अंग्रेज तत्काल उस राज्य पर अपना कब्जा कर लेते थे। इस प्रकार उस सल्तनत या राज्य का अंग्रेजी राज में विलय हो जाता था।


लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज अफसरों को कई संदेश भेजे कि दामोदर राव के बालिग होने तक उसे झांसी का शासक घोषित किया जाये। परंतु अंग्रेजों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।


"मैं झांसी नहीं दूंगी।" डलहोजी का फरमान ले कर पहुंचे गोरे अफसरों से लक्ष्मीबाई ने साफ-साफ कह दिया। हालांकि वह मन ही मन जानती थी कि यह इतना आसान नहीं होगा। उस रात वह अपने कमरे में अकेली फूट-फूट कर रोई । सुबह उसने दामोदर को साथ लिया और किला छोड़कर शहर की एक हवेली में आ गयी। गोरों ने झांसी की सत्ता संभाल ली।


अब रानी का रहन-सहन बिल्कुल सादा हो गया था। वह हर दिन मंदिर जाती। उसने दामोदर को तलवारबाजी और घुड़सवारी के साथ पढ़ना-लिखना भी सिखाना शुरू कर दिया। लेकिन वह न्याय के लिए लगातार अंग्रेज शासकों को पत्र भेजती रही।


तीन साल बीत गये। फिर आया सन् 1857।


पूरे भारत पर अंग्रेजों का कब्जा हो चुका था। उनकी सेना में हिंदुस्तानी सैनिकों की भरमार थी। उनमें से कई खुश नहीं थे। सैनिकों का उदाहरण ही लें। उनकी नाराजगी का कारण वे नये कारतूस थे जो अंग्रेजों ने उन्हें राइफलों में चलाने के लिए दिए थे। उन कारतूसों की मारक क्षमता बढ़ाने के लिए उनमें गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया था।


चूंकि धार्मिक कारणों से गाय या सुअर का मांस छूना वर्जित माना जाता था, इसलिए सिपाही इन कारतूसों को भी गंदा मानते थे। उनका सोचना था कि इन कारतूसों को इस्तेमाल करके वे अपने धर्म का अपमान कर रहे हैं। वैसे तो वहां कई और भी समस्याएं थीं, लेकिन यह नाराजगी का प्रमुख कारण था।


10 मई का चिलचिलाती गर्मी भरा दिन। बंगाल आर्मी के मेरठ में तैनात सिपाहियों ने अंग्रेज अफसरों पर हमला कर दिया। कुछ को तो उन्होंने मार भी डाला। सिपाहियों की बगावत शुरू हो गयी थी। यह खबर आग की तरह मध्य और उत्तरी भारत में फैल गयी। यहां भी हजारों सैनिक अफसरों के खिलाफ खड़े हो गये। उनमें से कुछ दिल्ली पहुंच गये। उन्होंने बहादुर शाह ज़फर-द्वितीय को अपना राजा घोषित कर दिया। यह आखिरी मुगल बादशाह थे। इस बूढ़े बादशाह को अंग्रेजों ने किले में बंदी बना रखा था।


जल्दी ही बगावत की लपटें झांसी तक पहुंच गयीं। अंग्रेजों को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था कि विद्रोह पर कैसे काबू पाया जाये। उन्होंने लक्ष्मीबाई से अनुरोध किया कि वह अपने सिपाहियों को समझा-बुझा कर छावनी में शांति से लौटने के लिए मनाये।


लक्ष्मीबाई ने हर संभव मदद का आश्वासन दिया। वह अजीब दुविधा में थी। अंग्रेजों को मना नहीं किया जा सकता था क्योंकि झांसी सदैव से उनकी वफादार रही थी। वह अपनी जनता को भी मना नहीं कर पा रही थी क्योंकि वह खुद आजादी में विश्वास करती थी।


जब वह इन सवालों का हल तलाशने का प्रयास कर रही थी, तभी पड़ोसी राज्यों ओरछा, टेहरी व दतिया के शासकों ने झांसी पर चढ़ाई कर दी। लेकिन लक्ष्मीबाई हालात को भांप चुकी थी। उसने अपनी सेना इकट्टी कर उसका नेतृत्व किया। कोई भी हमलावर झांसी के आसपास तक नहीं फटक पाया।


इस बात से बौखलाएं गोरों ने रानी पर बगावत की तैयारी का आरोप मढ़ दिया।


यह उनका आखिरी हथियार था। लक्ष्मीबाई ने विद्रोहियों का साथ देने का फैसला किया। आखिर उसने आजादी का बिगुल फूंक ही दिया।


जब अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा किया था, तब रानी ने हथियारों को गोपनीय तरीके से किले के नीचे गड़वा दिया था। सबसे पहले उसने अपने उन हथियारों को खुदवा कर निकलवाया। फिर उसने बंदूकें और तलवारें बनाने के दो कारखाने शुरू कर दिए। हजारों आदमियों के साथ कुछ महिलाओं को भी लड़ाई का प्रशिक्षण दिया गया। थोड़े ही दिन में झांसी की सेना में 15000 जुझारू योद्धा थे।


लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार हो कर जगह-जगह अपनी गतिविधियों का निरीक्षण करती। अक्सर उसके कंधे पर दो आंखें चमकती दिखतीं। वे रानी के पीछे कपड़े से बंधे नन्हें दामोदर की आंखें थीं। वह अपनी छोटी-छोटी बांहों से मां को जकड़े रहता। चूंकि रानी हर समय घोड़े पर बैठी दिखती थी, अतः लोगों का मानना था कि वह बिस्तर से निकल कर सीधे घोड़े पर सवार हो जाती है।


इस बीच अंग्रेजों ने भारत पर फिर से कब्जा करना शुरू कर दिया। बहादुरशाह जफर को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें देश निकाला दे कर रंगून भेज दिया गया। मार्च 1858 तक अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण करने की तैयारी कर ली थी। यह काम सबसे योग्य माने जाने वाले जनरल ह्यूग रोज़ को सौंपा गया।


23 मार्च को रोज़ की सेना झांसी आ पहुंची। लक्ष्मीबाई के दो अच्छे तोपची गुलाम गौस खान और खुदाबख्श दुश्मनों पर अंधाधुंध गोले बरसा रहे थे। लक्ष्मीबाई किले के बुजों के ऊपर-नीचे लगातार दौड़ कर अपने सैनिकों का हौसला बढ़ा रही थी। दोनों ओर से गोलियों की बौछार जारी थी।


31 मार्च की शाम बेतवा नदी के किनारे आग की लपटें दिखी। यह लक्ष्मीबाई के बचपन के मित्र तात्या टोपे के आगमन का संकेत था वे नानाजी पेशवा की सेना के साथ लक्ष्मीबाई की मदद करने आये थे किले के भीतर खुशी की लहर दौड़ गयी।


लेकिन रोज़ की सेना बेहद अनुशासित थी। उसने हमले का करारा जवाब दिया। तात्या टोपे को 170 किलोमीटर दूर कालपी नाम के स्थान तक पीछे हटना पड़ा। इसके बाद रोज ने झांसी की घेराबंदी जारी रखी। अचानक अंग्रेजी तोपों ने किले की दीवार पर बड़ा-सा छेद बना दिया। इसके तीन दिन बाद गोरी फौज किले के भीतर घुस गयी।


घमासान लड़ाई में लक्ष्मीबाई के 5000 सैनिक शहीद हुए। रोज़ के 60 सिपाही मारे गये। लेकिन रानी कहां थीं?


वह बच कर निकल गयीं। उसने दामोदर को पीठ पर दुपट्टे से कस कर बांधा और अपने घोड़े को किले की दुर्गम ढाल पर नीचे दौड़ा दिया। उसके साथ कोई 350 सैनिक थे। लगातार 24 घंटे के सफर के बाद यह कालपी में तात्या टोपे से मिली। रोज़ ने उनका पीछा किया व अपनी स्थिति मजबूत कर ली।

Nana Sahib, Tatya tope & Rani Lakshmi Bai in sepoy revolution 1857. सिंधिया गद्दार, ह्यूग रोज़ कि सेना ने रानी को मारा, The story of Rani Jhansi hindi


इस बीच बाजी राव के भतीजे राव साहब ने भी तात्या टोपे और लक्ष्मीबाई के साथ हाथ मिला लिया। वे तीनों ग्वालियर पहुंचे। उन्हें उम्मीद थी कि ग्वालियर के सिंधिया उनकी मदद करेंगे। लेकिन उन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया। हालांकि उनके सैनिक लक्ष्मीबाई के साथ थे। रानी की ख्याति इतनी अधिक फैल चुकी थी कि जब सैनिकों ने सुना कि पेशवा की सेना की एक मुखिया लक्ष्मीबाई भी है तो बड़ी संख्या में सैनिकों ने अपनी सेना छोड़ दी।


सिंधिया को भाग कर अंग्रेजों के यहां शरण लेनी पड़ी। खाली हुए सिंहासन पर राव साहब का कब्जा हो गया। परंतु रानी को चैन नहीं था। हमें नये हमले की तैयारी करनी होगी।" रानी ने तात्या टोपे और राव साहब से कहा। जैसा कि तय था, 16 जून को ग्वालियर किले के बाहर रणभेरी गूंज उठी। रोज़ बड़ी सेना और ढेर सारे हथियारों के साथ पहुंच गया था।


एक बार फिर भयंकर युद्ध हुआ। घोड़े पर सवार लक्ष्मीबाई दोनों हाथों में तलवारें लिए दुश्मनों से मोर्चा ले रही थी। घोड़े की लगाम उसने दांतों से थाम रखी थी। उसकी आंखों से जैसे आग बरस रही थी। वह एक के बाद दूसरे हमलावर से दो-दो हाथ कर रही थी। उसके गहनों के नगीने जगमगा रहे थे, तलवार सूरज की तरह चमचमा रही थी। वह पुरुषों से भी कहीं अधिक बहादुरी से मोर्चा संभाले हुए थी। लेकिन लड़ाई के तीसरे दिन एक अनजान सैनिक ने उस पर गोली दाग दी। यह सिपाही भी नहीं जानता था कि घायल होने वाली झांसी की रानी हैं। ग्वालियर के पास कोटे की सराय नामक स्थान पर वह गिर पड़ी।


उसके सैनिक जमा हो गये। वे दुखी थे। यह नहीं हो सकता। उनकी प्यारी रानी कभी मर नहीं सकती। "मेरे गहने सिपाहियों में बाँट देना और दामोदर की देखभाल करना।" अपनी आखिरी सांसों के साथ रानी बुदबुदाई।


जैसे ही रानी के मरने की खबर फैली, पेशवा सेना के पैर उखड़ गये। सिंधिया को ग्वालियर वापस मिल गया। तात्या टोपे पकड़ा गये और उन्हें एक साल बाद फांसी दे दी गयी। राव साहब को भी चार साल बाद फांसी दे दी गयी। सैनिक विद्रोह का अंत हो गया।


भारतीय इतिहास शीर्ष कथाओं से भरा पड़ा है। वैसे तो लक्ष्मीबाई ऐसी पहली भारतीय महिला नहीं थी, जिसने अंग्रेजों से मोर्चा लिया था। लेकिन वह सबसे अधिक लोकप्रिय जरूर हैं। ऐसी ही वीर किट्टूर की रानी चेन्नम्मा भी थी। लेकिन वह एक अलग कहानी है।

Comments

Popular posts from this blog

ACON bridge Infosys questions and eligibility 2024

Associate Consultant questions About ACON Associate Consultant Bridge is one of the flagship programs at Infosys which allows employees to make significant career shifts from Technology to Consulting space. It is a detailed course on the key fundamentals of Process and Domain Consulting. An employee shortlisted for this Bridge Program will build on strong foundations and learn how consulting helps in different phases of the project including problem definition, effort estimation, diagnosis, solution generation, design and deployment and participate in unit-level and organizational initiatives.  Such employees develop an advanced domain knowledge to provide high quality and value-adding consulting solutions to Infosys clients! Who is eligible for ACON Bridge? There are several parameters to determine eligibility for ACON Bridge. The bridge team determines the final eligibility, and these employees can nominate themselves on the LnC portal. Some of the parameters are given below Ra...

Infosys Job Roles designation | Systems Engineer, Testing and Consulting

There are mainly four career branch/ stream with Infosys. Delivery Architecture Testing Consultancy Pranoy Match Delivery to Consulting  hierarchy in Infosys Operations Executive -> Systems Engineer-> Senior Systems Engineer-> Technical Analyst-> Technical Lead-> Technical Architect/Project Manager-> Senior Technical Architect/SPM-> Principal Consultant/GPM.  The variation could be understood if we take a look at different streams at Infosys. What is job level 6 in Infosys? This is the mid management level in Infosys. In delivery, following roles are mapped to JL 6: Project Manager Senior Project Manager Group Project Manager In Consultancy, following roles fall under job level 6: Lead Consultant Principal Consultant In technical stream, following roles fall under JL6: Lead Architect Senior Architect Note: there are sub levels in JL6 and these are mapped to different sub levels. Consulting hierarchy at Infosys  Consultants are either MBA graduates or ...

कबीर तू का तू | Tu ka tu Lyrics

Tu ka tu Lyrics| तू का तू इनका भेद बता मेरे अवधू अच्छी करनी कर ले तू डाली फूल जगत के माही जहाँ देखा वहां तू का तू हाथी में हाथी बन बैठो चींटी में है छोटो तू होय महावत ऊपर बैठे हांकन वाला तू का तू चोरों के संग चोरी करता बदमाशों में भेड़ो तू चोरी करके तू भग जावे पकड़ने वाला तू का तू दाता के संग दाता बन जावे भिखारी में भेड़ो तू मंगतों होकर मांगन लागे देने वाला तू का तू नर नारी में एक विराजे दो दुनिया में दिसे क्यूँ बालक होकर रोवन लागे राखन वाला तू का तू जल थल जीव में तू ही विराजे जहाँ देखूं वहां तू का तू कहें कबीर सुनो भाई साधो गुरु मिला है ज्यों का त्यों Tu ka tu English lyrics Inaka Bhed Bata Mere Avadhu Achi Karni Kar Le Tu Dali Phool Jagat Ke Mahi Jahan Dekha Vahan Tu ka tu Hati Me Hati Ban Baitho Chinti Me Hain Chhoto Tu Hoy Mahavat upar Baithe Haankan Vala Tu ka tu Choron Ke Sang Chori Karta Badamaashon Mein Bhedo Tu Chori Karke Tu Bhag Jaave Pakadane wala Tu ka tu Data Ke Sang Data Ban Jave Bhikhari Mein Bhedon Tu Mangto Hokar Mangan Lage Dene wala Tu ka tu Nar Nari Mein Ek Viraje Do...