कबीरदास जी कहते हैं कि वही व्यक्ति पीर/पूजनीय हैं जो दूसरों की पीड़ा को समझता है। और जो व्यक्ति दूसरे की पीड़ा को नहीं समझता हो उसका क्या? वो तो पीड़ा में ही पीड़ा के समान है।
इस पर ही महात्मा गांधी जी का भजन है वैष्णव जन तो तेने कहिए। मुझे भी कहते हैं कि जो पराए व्यक्ति की पीड़ा जानता हो उसी को वैष्णव जन कहा जाए।
जो पर पीर जानिए सो कबीरा पीर
जो दूसरों की पीड़ा को जानता हो। जो दूसरों के साथ संवेदनशील हो। जो दूसरे के दुख में स्वयं दुखी हो जाए वही सच्चा साधु है। ऐसा कबीर साहेब का कहना है।
पीर का अर्थ है पूजनीय अर्थात साधू।
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