पाना नहीं जीवन को, बदलना है साधना।
धुएँ सा जीवन मौत है, जलना है साधना॥
मुंड मुड़ाना बहुत सरल है, मन मुंडन आसान नहीं,
व्यर्थ भभूत रमाना तन पर, यदि भीतर का ज्ञान नहीं,
पर की पीड़ा में मोम सा, पिघलना है साधना।
पाना नहीं जीवन को, बदलना है साधना ॥१॥
मन्दिर में हम बहुत गये पर, मन यह मन्दिर नहीं बना,
व्यर्थ शिवालय में जाना जो , मन शिवसुन्दर नहीं बना,
पल-पल समता में इस मन का, ढलना है साधना।
पाना नहीं जीवन को, बदलना है साधना ॥२॥
सच्चा पाठ तभी होगा जब, जीवन में पारायण हो,
श्वांस-श्वांस धड़कन-धड़कन में, जुड़ी हुई रामायण हो,
तब पर परिणति से चित्त हटा, रमना है साधना।
पाना नहीं जीवन को, बदलना है साधना ॥३॥
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