बाल बोध पाठमाला से
Veetrag sarvagya hitankar
वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, भविजन की अब पूरो आस।
ज्ञान भानु का उदय करो मम, मिथ्यातम का होय विनास।।
जीवों की हम करुणा पालें, झूठ वचन नहिं कहें कदा।
पर धन कबहुँ न हरहूँ स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा।।
तृष्णा लोभ बढ़े न हमारा, तोष सुधा नित पिया करें।
श्री जिनधर्म हमारा प्यारा, तिसकी सेवा किया करें।।
दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार।
मेल मिलाप बढ़ावें हम सब, धर्मोन्नति का करें प्रसार।।
सुख-दुख में हम समता धारें, रहें अचल जिमी सदा अटल।
न्याय मार्ग को लेश न त्यागें, वृद्धि करें निज आतम बल।।
अष्ट करम जो दुख हेतु हैं, तिनके क्षय का करें उपाय।
नाम आपका जपें निरंतर, विघ्न शोक सब ही टल जाय।।
आतम शुद्ध हमारा होवे, पाप मैल नहिं चढ़े कदा।
विद्या की हो उन्नति हम में, धर्म ज्ञान हू बढ़े सदा।।
हाथ जोड़कर शीश नवावें, तुमको भविजन खड़े-खड़े।
यह सब पूरो आस हमारी, चरण-शरण में आन पड़े।।
वीतराग सर्वज्ञ हितंकर का अर्थ
भगवान वीतरागी हैं। अर्थात उन्हें न किसी से विशेष प्रेम है ना किसी से विशेष वैर है। सर्वज्ञ हैं यानी की प्रत्येक वस्तु का उन्हें ज्ञान है और हितंकर हैं, यानी की सभी प्राणियों के लिए हितकारी हैं। भविजन का अर्थ होता है कि जो जीव भव्य हैं।तोष का अर्थ है: संतोष
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