भावनाओं का मतलब
जिनका बार-बार चिंतन किया जाए उन्हें भावना कहते हैं। ऐसी 16 भावनाएं हैं जो तीर्थंकर प्रकृति का बंध करते हैं। वे इस प्रकार है:
दरश विशुद्धि भावना भाय, षोडष तीर्थंकर पद पाय,परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो।।
जाने हुए अर्थ को पुन:-पुन: चिंतन करना भावना है।
-छुल्लक श्री जिनेंद्र वर्णी जी
तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार १६ कारण भावना:
दर्शनविशुद्धिर्विनयसंपन्नता शीलव्रतेष्वनतीचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी साधुसमाधिर्वैयावृत्त्यकरणमर्हदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिर्मार्गप्रभावना प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थंकरत्वस्य।२४।
अर्थ: दर्शनविशुद्धि, विनयसंपन्नता, शील और व्रतों का अतिचार रहित पालन करना, ज्ञान में सतत उपयोग, सतत संवेग, शक्ति के अनुसार त्याग, शक्ति के अनुसार तप, साधुसमाधि, वैयावृत्त्य करना, अरहंतभक्ति, आचार्यभक्ति, बहुश्रुतभक्ति, प्रवचनभक्ति, षट् आवश्यक क्रियाओं को न छोड़ना, मोक्षमार्ग की प्रभावना और प्रवचनवात्सल्य ये तीर्थंकर नामकर्म के आस्रव हैं।
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