श्री आदिनाथ भगवान
आदिम तीर्थकर प्रभु, आदिनाथ मुनिनाथ।
आधि व्याधि अघ मद मिटे तुम पद में मममाथ।।
वृष का होता अर्थ है, दयामयी शुभ धर्म।
वृष से तुम भरपूर हो, वृष से मिटते कर्म।।
दीनों के दुर्दिन मिटे तुम दिनकर को देख।
सोया जीवन जागता, मिटता अघ अविवेक।।
शरण चरण है आपके, तारण तरण जहाज।
भव दधि तट तक ले चलो करुणाकर जिनराज।।
जैनाचार्य सन्तशिरोमणि श्री विद्यासागर मुनिमहाराज के द्वारा यह ‘स्तुति शतक" अपर नाम "दोहा थुति शतक "।
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