मत कर माया को अहंकार , मत कर काया को अभिमान
काया गार से काची, काया गार से काची, जैसे ओस रा मोती
झोंका पवन का लग जाये झपका पवन का लग जाए
काया धूल हो जासी
ऐसा सख्त था महाराज, जिनका मुल्कों में राज
जिन घर झूलता हाथी, जिन घर झूलता हाथी, जैसे ओस रा मोती...
भरया सिन्दड़ा में तेल, जहाँ रचयो है सब खेल
जल रही दिया की बाती, जल रही दिया की बाती, जैसे ओस रा मोती...
खूट गया सिन्दड़ा रो तेल, बिखर गया सब निज खेल
बुझ गया दिया की बाती, बुझ गया दिया की बाती, जैसे ओस रा मोती...
लाल में का लाल, तेरा कौन क्या हवाल
जिनको जम ले जासी, जिनको जम ले जासी, जैसे ओस रा मोती...
झूठा माई थारो बाप झूठा सकल परिवार
झूठी कूंटता छाती, झूठी कूंटता छाती, जैसे ओस रा मोती...
बोल्या भवानी हो नाथ, गुरूजी ने सिर पर धरया हाथ
जिनसे मुक्ति हो जासी, जिनसे मुक्ति हो जासी, जैसे ओस रा मोती...
यह गाना आप ने कहां सुना है? ज्यादातर लोगों ने इस गाने को स्कैम १९९२ - हर्शद मेहता के माध्यम से सुना है।
यह गाना अपने अंदर कितनी गहराई लिए हुए है!
असलियत में यह कोई गाना नहीं है। यह तो कबीरदास जी द्वारा रचित एक दोहा है, जो कि पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास में लिखा गया था।
यह दोहा, मारवाड़ी पद्धति से मिलता जुलता है।
स्कैम १९९२ के आखिरी में आया हुआ यह गाना, कबीरकैफे द्वारा पूरी तरह से गाया भी नहीं गया है।
भावार्थ:
जिन लोगों के पास थोड़ी सी भी संपत्ति और सुन्दरता होती है वे लोग प्रायः करके इसका अहंकार करते हैं।
और जिन लोगों के पास न ही संपत्ति है और न ही सुन्दरता। वे ऐसी संपत्ति व सुन्दरता के ख्वाब देखते हैं।
पर नीति यह कहती है कि न ही संपत्ति स्थाई है और न ही सुन्दरता। और नीति यह भी कहती है कि मनुष्य को संसार की नश्वरता का विचार करते रहना चाहिए।
वैसे तो संसार की नश्वरता का विचार कई दोहे करवा देते हैं। पर यह दोहा मुझे अच्छी तरह से याद हो गया है।
आप कितना भी धन कमा लें, एक चक्रवर्ती के सामने आपकी यह धन-संपत्ति कुछ भी नहीं है। इस धन के लिए चक्रवर्ती को कोई दुकान भी नहीं खोलनी पड़ती।
और, काया? यह तो आप सभी देखते ही हैं कि एक व्यक्ति जवानी में जितना हष्ट-पुष्ट और सुंदर लगता था, बुढ़ापे में उसकी यह काया मुरझा जाती है। और प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म हुआ है उसको एक दिन मरना ही पड़ता है।
इन सत्य को जो लोग जान लेते हैं, वे लोग कभी इन चीजों का अहंकार नहीं करते हैं। और ऐसे लोगों को राह, एक गुरु ही दिखाते हैं। इस लिए कहा गया है,
बोल्या भवानी हो नाथ, गुरूजी ने सिर पर धरया हाथ
जिनसे मुक्ति हो जासी
यहां तक तो सब कुछ समझ में आता है। पर कबीर दास जी ने मां- बाप या परिवार को झूठा क्यों कहा है? चूंकि मां-बाप या परिवार हमें पालते-पोस्ते एवं सहारा देते हैं। पर आपके मरण उपरांत यह आपका साथ नहीं दे सकते हैं।
साथ तो आपका हमेशा गुरु के मुख से निकले हुए वचन ही देते हैं। और लौकिक गुरु के नहीं, पारमार्थिक गुरु के वचन ही आपका साथ दे सकते हैं।
आखिर में हम प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ समझ लेते हैं-
काया गार से काची - यह काया ओस के मोती के समान नाजुक है
सिन्दड़ा - दिया
जम ले जासी - मृत्यु का आ जाना
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