बुद्ध, हिंदू और ईसाई संप्रदाय के कुछ लोग कहते हैं कि तिरुवल्लुवर इनके अपने-अपने धर्म मानने वाले थे। पर असल में तिरुवल्लुवर उपर्युक्त धर्मो को मानने वाली नहीं थे। वे एक जैन थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि वह दिगंबर जैन आचार्य मुनि एलाचार्य या आचार्य कुंदकुंद हुए।
तिरुवल्लुवर के जैन होने का क्या सबूत है?
तिरुवल्लुवर द्वारा रचित तिरुक्कुरल से साफ जाहिर होता है कि तिरुवल्लुवर जैन थे। तिरुक्कुरल के पहले दोहे में आदिनाथ भगवान को नमस्कार किया गया है। आदिनाथ भगवान पहले जैन तीर्थंकर हुए हैं।
थिरुकुरल की विशेषता
- तिरुक्कुरल में कुरल दिए गए हैं। और कुरल लिखने की शैली आम श्लोक से निराली है। आम श्लोक में पंक्तियों के अंत शब्द में ताल बैठता है। इसके उलट कुरल पंक्तियों के शुरुआती शब्द में ताल बैठता है।
- थिरुकुरल आज से (अंग्रेजी सन २०२१) से करीब २००० वर्ष पहले लिखी गई थी।
- इसमें चार पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की जगह तीन पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ और काम का ही वर्णन है। अथवा यह गृहस्थ के लिए उत्तम पुस्तक है।
- यह चाणक्य अर्थशास्त्र से बेहतरीन पुस्तक है। चाणक्य अर्थशास्त्र में स्त्री के विषय में गलत सोच को उभारी गई है।
- तिरुक्कुरल चाणक्य अर्थशास्त्र के समकालीन लिखी गई है।
- हमारे प्रिय राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम तिरुक्कुरल को जीवन के लिए उत्तम सूत्र कहते थे। और श्री अब्दुल कलाम जी की चार पसंदीदा पुस्तकों में से एक थिरुकुरल भी रही है।
आपको नीचे तिरुक्कुरल की हिंदी PDF मिल जाएगी।
तिरुक्कुरल पुस्तक का तमिल भाषा से हिंदी भाषा में भाषांतरण श्री गोविंद राय जैन ने किया है। आप तिरुक्कुरल को यहां से डाउनलोड भी कर सकते हैं। थिरुकुरल का असली आनंद तमिल जानने वाले व्यक्ति ही ले सकते हैं।
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