जीवन एक संग्राम | Yuddh nahi jinke jivan me poem
युद्ध नहीं जिनके जीवन में वो भी बहुत अभागे होंगे
या तो प्रण को तोड़ा होगा या फिर रण से भागे होंगे
डॉ. अर्जुन सिसोदिया
युद्ध नहीं जिनके जीवन में वो भी बहुत अभागे होंगे
या तो प्रण को तोड़ा होगा या फिर रण से भागे होंगे
दीपक का कुछ अर्थ नहीं है जब तक तम से नहीं लड़ेगा
सूरज नहीं प्रभा बाँटेगा जब तक स्वयं नहीं धधकेगा
बिना दहकती ज्वाला के क्या कुंदन कभी बना है सोना
बिना घिसे मेहंदी ने बोलो कब पाया है रंग सलौना
जीवन के पथ के राही को क्षण भर भी विश्राम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा जीवन एक संग्राम नहीं है।।
अपना अपना युद्ध सभी को हर युग में लड़ना पड़ता है
और समय के शिलालेख पर खुद को खुद गढ़ना पड़ता है
सच की खातिर हरिश्चंद्र को सकुटुम्ब बिक जाना पड़ता
और स्वयं काशी में जाकर अपना मोल लगाना पड़ता
दासी बनकर के भरती है पानी पटरानी पनघट में
और खड़ा सम्राट वचन के कारण काशी के मरघट में
ये अनवरत लड़ा जाता है इसमें युद्ध विराम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा जीवन एक संग्राम नहीं है।।
हर रिश्ते की कुछ कीमत है जिसका मोल चुकाना पड़ता
और प्राणपण से जीवन का हर अनुबंध निभाना पड़ता
सच ने मार्ग त्याग का देखा झूठ रहा सुख का अभिलाषी
दशरथ मिटे वचन की खातिर राम जिये होकर वनवासी
पावक पथ से गुजरीं सीता रही समय की ऐसी इच्छा
देनी पड़ी नियति के कारण सीता को भी अग्नि परीक्षा
वन को गईं पुनः वैदेही निरपराध निर्दोष अकारण
जीतीं रहीं उम्रभर बनकर त्याग और संघर्ष उदाहरण
निज पुत्रों को लिए गर्भ में वन का कष्ट स्वयं ही झेला
खुद के बल पर लड़ा सिया ने जीवन का संग्राम अकेला
धनुष तोड़ कर जो लाए थे अब वो संग में राम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा जीवन एक संग्राम नहीं है।।
डॉ. अर्जुन सिसोदिया हिन्दी कविता में रामधारी सिंह दिनकर की परम्परा के कवि हैं। ओज और उत्साह से परिपूर्ण उनका लेखन समाज के शौर्यबोध को पुष्ट करने का कार्य करता है। वे अपने देश की गौरवशाली परम्परा पर गर्व करने के पक्षधर हैं किन्तु अपनी ख़ामियों को नज़र अन्दाज़ करने के कतई हिमायती नहीं हैं।
Dr Arjun Sisodiya belongs to Gulavathi, UP. He is a Veer Ras poet. His logical aggression and patriotism is the USP of his writings.
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