भगवान बनने से पहले भगवान को अनंत सुख प्राप्त हो जाता है। इसलिए भगवान बनने की प्रक्रिया में हमें प्रसन्न रहना सीख लेना चाहिए। इसके लिए छुल्लक जी ने एक सूत्र दिया था। भावना योगसूत्र मुझे सदा प्रसन्न रहना है। आपको लग रहा होगा यह तो कितना छोटा सा सूत्र है। आज दिनभर को विचारिए और सोचिए कि आप कितनी बार अप्रसन्न रहे। आप अप्रसन्न क्यों हुए हैं? मानिए आज आपको भोजन नहीं मिला। या कोई दुख उदय में आया। उदय में आया सो कट गया समझो। एक प्रकार से कर्जा चुक गया। तो ये बात भी तो हर्ष की है। मेरा ही पूर्व कर्म का उदय था सो कट गया। संयम के साथ उस कर्मोदय को सह लीजिए, तो अब आगे नहीं आयेगा। यदि ऐसा नहीं कर पाते हैं तो अपने आप को punishment दीजिए। नौ बार महामंत्र पढूंगा या एक का सिक्का दान करूंगा या दोनों ही करूंगा। आगे से फिर हर स्थिति में खुश रहूंगा। दो बातें हैं परिस्थिति और मन:स्थिति। परिस्थिति की अनुकूलता जब आपके हाथों में नहीं है तो उपर्युक्त प्रकार सोच विचार कर हमेशा प्रसन्न रहिए, आनंदित रहिए। आचार्य श्री का हायकू: कम से कम, स्वाध्याय का वर्ग हो, प्रयोग काल।
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