जीवन एक संग्राम | Yuddh nahi jinke jivan me poem
युद्ध नहीं जिनके जीवन में वो भी बहुत अभागे होंगे या तो प्रण को तोड़ा होगा या फिर रण से भागे होंगे डॉ. अर्जुन सिसोदिया युद्ध नहीं जिनके जीवन में वो भी बहुत अभागे होंगे या तो प्रण को तोड़ा होगा या फिर रण से भागे होंगे दीपक का कुछ अर्थ नहीं है जब तक तम से नहीं लड़ेगा सूरज नहीं प्रभा बाँटेगा जब तक स्वयं नहीं धधकेगा बिना दहकती ज्वाला के क्या कुंदन कभी बना है सोना बिना घिसे मेहंदी ने बोलो कब पाया है रंग सलौना जीवन के पथ के राही को क्षण भर भी विश्राम नहीं है कौन भला स्वीकार करेगा जीवन एक संग्राम नहीं है।। अपना अपना युद्ध सभी को हर युग में लड़ना पड़ता है और समय के शिलालेख पर खुद को खुद गढ़ना पड़ता है सच की खातिर हरिश्चंद्र को सकुटुम्ब बिक जाना पड़ता और स्वयं काशी में जाकर अपना मोल लगाना पड़ता दासी बनकर के भरती है पानी पटरानी पनघट में और खड़ा सम्राट वचन के कारण काशी के मरघट में ये अनवरत लड़ा जाता है इसमें युद्ध विराम नहीं है कौन भला स्वीकार करेगा जीवन एक संग्राम नहीं है।। हर रिश्ते की कुछ कीमत...